इक और जुस्तजु आज दिल को घेरे है ,
जितने सवाल हैं उतने जवाब
जितने जवाब फ़िर उतने सवाल;
सामने एक किताब लिये
फ़िर रस्ते पे अल्हड की तरह चल दिये,
वापस आने का मन न हुआ
क्युंकि इन्तज़ार कर रही थी मेरा
फ़िर वही सवाल||
इस्से बचने के लिये
यादों को तिजोरी मे रख्खा है |
पर दिवारें इतनी सख्त कहां||
तोड़ आयेंगी बाहर
फ़िर वही सवाल ||
जवाब हैं…
जवाब हैं पर अनगिनत,
और यही उठातें हैं फ़िर वो सवाल||
मुझे ईक जवाब चुन दो ताकि फ़िर ना आये
वो इक सवाल ||
3 comments:
wo ek sawaal hi nahi...bahut saare sawal hai shayad waise..deewar todne waale.
nice poem. read you after long time :)
baat to sahi hai ... kafi sawaal hain aise
Have you ever watched "Into The Wild"?
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