Wednesday, September 08, 2010

वो इक सवाल

इक और जुस्तजु आज दिल को घेरे है ,
जितने सवाल हैं उतने जवाब
जितने जवाब फ़िर उतने सवाल;
सामने एक किताब लिये
फ़िर रस्ते पे अल्हड की तरह चल दिये,
वापस आने का मन न हुआ
क्युंकि इन्तज़ार कर रही थी मेरा
फ़िर वही सवाल||

इस्से बचने के लिये
यादों को तिजोरी मे रख्खा है |
पर दिवारें इतनी सख्त कहां||
तोड़ आयेंगी बाहर
फ़िर वही सवाल ||

जवाब हैं…
जवाब हैं पर अनगिनत,
और यही उठातें हैं फ़िर वो सवाल||
मुझे ईक जवाब चुन दो ताकि फ़िर ना आये
वो इक सवाल ||

3 comments:

crazy devil said...

wo ek sawaal hi nahi...bahut saare sawal hai shayad waise..deewar todne waale.

nice poem. read you after long time :)

sajjan said...

baat to sahi hai ... kafi sawaal hain aise

Ashutosh said...

Have you ever watched "Into The Wild"?